कट्टर सेक्युलर, अगाध गंगा जमुनी और राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरदचन्द्र गोविंदराव पवार ने पूछा कि निजामुद्दीन पश्चिम (दिल्ली) के मरकज में तब्लीगी जमात के समारोह (13-15 मार्च, इत्जेमा) की अनुमति किसने दी थी ? उसे प्रतिबंधित क्यों नहीं किया गया ? अर्थात् पवार ने अरविन्द केजरीवाल का नाम नहीं सुना। तो अपने ही मुख्य मंत्री उद्धव बाल ठाकरे से पूछ लेते। __ अब तक हिन्दू हृदय सम्राट रहे स्व. बाल केशव ठाकरे द्वारा निर्मित मातोश्री भवन (महाराष्ट्र सीएम का घरेलू कार्यालय) में भी कोरोना विषाणु डेरा डाल चुके हैं। सुरक्षा गार्डों को एक चायवाले ने इस कोरोना वायरस से संक्रमित कर दिया। दिल्ली में शाहीनबाग के बाद इस अवैध नौ-मंजिला निजामुद्दीन मरकज का जलसा केजरीवाल की दूसरी नायाब सौगात है अपने वोटरों को। वहाँ से चलकर तेईस राज्यों की इस कोरोना वायरस ने यात्र की। राष्ट्रभर में लाखों त्रस्त हो गये। तबलीगी जमात की यही धार्मिक किरदारी रही। नतीजन फुटपाथी विक्रेता, मोची, रिक्शेवाले, दिहाड़ी श्रमिक, परचून दुकानदार, कुली इत्यादि अब इन तबलीगी मुसलमानों के दया के पात्र बने रहेंगे। ऐसे जनद्रोही और राष्ट्रघाती संगठन को दण्डित करने का कदम मोदी सरकार उठाने से क्यों हिचक रही है ? कितनी बलि और चाहिए ? आखिर यह तबलीगी जमात है क्या बला? तबलीगी का शाब्दिक अर्थ है प्रोपेगंडा। अकीदतमंदों द्वारा इस्लाम का प्रा प्रचार। इसके संस्थापक (अमीर) मौलाना मोहम्मद इलियास कंधालवी ने 1927 में इसे बनाया था। उनकी मान्यता में मुसलमान लोग अपने पथ से भ्रष्ट हो गए थे। उन्हें वापस पैगम्बर की राह पर लाना है। उस वक्त पाकिस्तान आन्दोलन भी तेज हो गया था। मोहम्मद अली जिन्ना हर मुसलमान को अपना मोहरा मानते थे हालाँकि नेक मुसलमान से जुदा, वे खुद नियमित नमाज अता नहीं करते थे। मस्जिद तो भूले भटके ही चले जाते थे मगर इस्लाम फेविकोल जैसा था सबको जोड़ने के लिए। इलियास ने राशिद अहमद गंगोही से अनुप्राणित होकर लोगों को सच्चा इस्लाम मतावलंबी बनाने हेतु यह संगठन बनाया। उनके आत्मज मौलाना साद ने इसे व्यापक बनाया। इसमें इस्लामी पाकिस्तान के राष्ट्रपति (1990) रहे मुहम्मद रफीक तरार, नवाज शरीफ के पिता मियाँ मुहम्मद शरीफ, पाक आईएसआई के महानिदेशक जनरल जावेद नासिर (1993) आदि पुरोधा रहे। पाकिस्तानी क्रिकेटर शाहिद अफीदी, इंजमामुल हक और हाशिम अमला (दक्षिण अफ्रीका) इसके सदस्य हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश में इसके लाखों सदस्य हैं जो भारत के जानेमाने शत्रु हैं। अब लौटें भारत के तबलीगी जमात पर। शायद ही कोई पत्रिका, टीवी चैनल या मंच अछूता रहा हो जहाँ पर इन तबलीगियों की समाज-विरोधी हरकतें या बदमाशी की खबरें सुर्खियों में न रही होंमसलन जब दिल्ली से ये तबलीगी भागे थे तो इन्हें वहाँ रखने की समुचित व्यवस्था थी ताकि कोरोना की जांच की जा सके मगर वे सब छिपकर यूपी सीमा तक पहुंचे। वहाँ दिल्ली पुलिस के एक आदमी ने यूपी पुलिस पर दबाव डालकर इन्हें नोएडा में घुसा दिया। बाद में यूपी पुलिस ने उस दिल्ली पुलिस वाले को हिरासत में लिया। उसका नाम था मो. रहमान। गाजियाबाद में इन भगोड़ों को अस्पताल में रखा गया। वहाँ जांच के लिए आई नसों के सामने ये लोग विवस्त्र हो गयेएक जैन कालेज में उन्हें टिकाया गया तो वहाँ बिरयानी परोसने की माँग की। खुले में शौच करना, हर जगह थूकना (ताकि संक्रमण हो), हाथापाई करना आदि सामान्य बर्ताव हो गया थालखनऊ के कसाई बाड़ा के पास अली जान मस्जिद में तो इतना हंगामा किया इन तबलीगियों ने कि पुलिस को कड़ाई बढ़ानी पड़ी। इनकी जिद थी कि मस्जिद में ही रहेंगे क्योंकि उसके परिसर में मरे तो सीधे जन्नत जायेंगे जहाँ हरें मिलती हैं। तब एक सुरक्षा गार्ड ने टोका कि तुम्हारे अमीर मौलाना साद तो लापता हैं, खुद क्वारेंटीन में हैं। वस्तुस्थिति यह है कि अल्लाह सब देख रहा है और न्याय करता है। मौलाना साद की नाजों से पली इकलौती पुत्री का तयशुदा निकाह हो नहीं पाया। कई इस्लामी विद्वानों ने इन तबलीगियों की आलोचना में कहा कि हदीस की गलत व्याख्या मौलाना साद करते हैं। लखनऊ के अत्यंत प्रतिष्ठित मौलाना खालिलद फिरंगी महली ने सहधर्मियों से संयम की अपील की है। मौलाना कल्बे जव्वाद को तो इन तबलीगियों ने काफिर तक कह डाला। एक अतीव भयानक बात इस तब्लीगी जमात के बारे में यह है कि उसके कई सदस्य इस्लामी राष्ट्रों से हैं, खास कर मलेशिया, इंडोनेशिया, म्यांमार (रोहिंग्या) आदि से हैं। ये सब आतंकी संगठनों से भी जुड़े हैं। एक पहेली है कि आखिर मोदी सरकार ने अपनी सुपरिचित नीति के अनुसार इस संदिग्ध संगठन पर सख्ती क्यों नहीं की ? सेक्युलरपने वाली उदारता क्यों दर्शाई? नेहरू-इंदिरा कांग्रेस के तो ये वोट बैंक थे। स्वाभाविक है कांग्रेस का इन तबलीगियों के साथ याराना रहा है किन्तु हिन्दू पार्टी ने कठोर कदम उठाने से अटल-मार्का गुलगुलापन क्यों दर्शाया ? देश को जवाब चाहिए। के. विक्रम राव
तबलीगियों पर सख्ती क्यों नहीं