सांप एक विशेषण है भय और असुरक्षा का। हमारे देश की अनेक लोक कथाओं में सांपों के तिलस्मी संस्मरण आज भी बहुतायत में पढ़ने को मिल जाते । भारतीय संस्कृति पर सांप इतने हावी रहे हैं कि पश्चिमी देशों में तो भारत की छवि ही सपेरों और बाजीगरों के देश के रूप में मानी जाने लगी। भारतीय संस्कृति के अनुसार समुद्र मंथन हुआ तो सांप द्वारा, विष्णु भगवान ने विश्राम किया तो नाग शैय्या पर, श्रीकृष्ण ने पराक्रम दिखाया तो कालिया नाग का दहन करके, शंकर-भोले ने सांप को गले में धारण कर डाला। और तो और, भारतीय दर्शन के अनुसार सारी पृथ्वी ही शेषनाग के फन पर टिकी हुई है। आदमी यदि दुष्ट है तो उसे काला सांप कहकर संबोधन करना एक प्रचलित देशी मुहावरा है और यदि कोई व्यक्ति अकर्मण्य या आलसी है तो उसे मलूकदास के शब्दों में: अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम दास मलूका कह गए, सबके दाता राम। अजगर की उपमा किसी सुस्त आदमी से देना महज एक संयोग मात्र है या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक तर्क है और भारत के अजगर विश्व के अन्य भागों में पाए जाने अजगरों से किस प्रकार भिन्न हैं, यह विचार अजगर जाति के सपों के संबंध में अनेक आयाम प्रशस्त करता है। भारतीय अजगर 'कृष्णपुच्छ जिसका कि जंतु वैज्ञानिक नाम 'पाइथन मोल्फरस है, का आकार लगभग 25 फुट तक लंबा होता है तथा इसकी रीढ़ में अधिकतम 4०० कशेरूकाएं पाई जाती हैं। इतने विशालकाय जीव को अपने शिकार को पकड़ने के लिए ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी पड़ती। अपने आसपास के छोटे-मोटे शिकार को तो सांसों के खिंचाव से ही यह उदरस्थ कर डालता है। शिकार का प्राणांत करने के लिए अपने अन्य बंधु सपों की भांति यह भी अपनी कुंडली को उसके चारों ओर पाशबद्ध कर उसका कचूमर निकाल डालता है और फिर मृत शरीर को यह समूचा ही निगल जाता है। निगलने की शुरूआत शिकार के सिर वाले सिरे से ही होती है और इस प्रक्रिया में विशालकाय मुख से निकली ढेर सारी लसिका(थूक) काफी सहायक होती है, जो शिकार को चिकना एवं लसलसा बनाकर सीधे पेट तक पहुंचा देती है। भारतीय अजगरों की एक और दूसरी जाति है 'पाइथन। इनका रंग धुंधलागहरा जैतूनी तथा कुछ काले धब्बों से युक्त होता है अथवा धूमिल धूसर और गहरे बादामी रंग का होता है। इस जाति के अजगर भारत के मध्य और पश्चिमी भाग तथा दक्षिण में मद्रास में बहुतायत से पाए जाते हैं। बादामी रंग के इन अजगरों की औसत लंबाई 15-16 फुट ही होती हैमदारी जिन अजगरों को पालते हैं, वे इसी नस्ल के होते हैं। मलूकदास ने अजगरों की सुस्ती पर जो फब्ती कसी थी वह गलत नहीं थी। एक बार भरपेट शिकार उदरस्थ कर लेने के पश्चात अजगर महीनों निराहार रहने की क्षमता रखता है। इनका प्रिय भोजन खरगोश, भेड़, बछड़े, हिरण आदि हैं। यूं कभी निहत्था आदमी भी पल्ले पड़ जाए तो परहेज उससे भी इन्हें नहीं होता है। शिकार के समय यह अपने फेफड़ों को फुला लेता है और मुंह को थोड़ा-सा ही खोलता है मगर इतनी जोर से फुफकार छोड़ता है मानो भाप के इंजिन से तेजी से भाप निकल रही हो। फुफकार की रौद्रता से ही शिकार के आधे प्राण निकल जाते हैं। पूर्वी देशों में पाए जाने वाले अजगरों की प्रजातियां संतान उत्पत्ति अंडे द्वारा करती हैं जबकि पश्चिमी अजगरों की प्रजातियां सदेह शिशु उत्पन्न करती हैं। पश्चिमी अजगर 'बोआ लंबाई में पूर्वी अजगर और खासकर रेखा जलांकित अजगर 'रीगल पाइथन से छोटा ही होता है। रीगल पाइथन शायद विश्व में सबसे बड़ा अजगर होता है जिसकी प्रामाणिक लंबाई अधिकतम 33 फुट तक नापी गई है। पश्चिमी अजगर या बोआ प्रायः वृक्षचारी होते हैं। ब्राजील के एक यात्री ने एक 40 फुट लंबे एनकोंडा का उल्लेख किया है जिसे उसने एक भारी वृक्ष की शाखा पर मरा हुआ लटका देखा था जो एक घोड़े को पूरे का पूरा उदरस्थ कर गया था मगर वैज्ञानिकों को इस तरह के कोई प्रमाण नहीं मिले और वे इसे मात्र एक किंवदंती ही मानते हैं। वैसे एनकोंडा अजगरों में उभयजीवी सर्प होता है जो कि नदियां आदि सूख जाने पर कीचड़ में घुसकर अपने बुरे दिन निकाल लेता है और सामान्य स्थिति आने पर जल में रहने लगता है। समय के साथ अपने को समायोजित करना अजगर खूब जानता हैदुनिया के तमाम जीव-जंतु जहां अजगर से डरते हैं वहीं दूसरी ओर कभी- कभी अजगर के जीवन में भी ऐसे मौके आते हैं जब उसे डरकर कुंडली बनाकर 'फुटबाल बन जाना पड़ता है। सिर तथा पूंछ को इसी गोलाई के भीतर वह छिपाता है और 10-12 फुट तक यदि उसे लुढ़कना भी पड़े तो गेंद की तरह लुढ़कता रहता है। कंदुक अजगर 'पाइथन रीगियस में यह विशेषता सबसे अधिक होती है। बहरहाल समय के साथ-साथ मान्यताएं एवं अवधारणाएं बदलती हैं। मलूकदास के समय भले ही अजगर अकर्मण्यता एवं सुस्ती का प्रतीक माना जाता रहा हो कि 'अजगर करे न चाकरी मगर आज यही अजगर तमाम लोगों की जीविका का साधन बने हुए हैं और हजारों मदारी, बाजीगर एवं सपेरे इनके बल पर अपने परिवार की जीविका चला रहे हैं। नरेन्द्र देवांगन
सुस्त नहीं होता अजगर